कार्यक्रम की अध्यक्षता डॉ. के.पी. सिंह ने की। उन्होंने अपने संबोधन में कहा कि शिक्षा के क्षेत्र में इस प्रकार के विमर्श समाज को नई दिशा देने में सहायक होते हैं।महाविद्यालय के प्राचार्य डॉ. हर्ष कुमार दौलत ने सभी अतिथियों का स्वागत किया और संगोष्ठी के महत्व को रेखांकित किया। संगोष्ठी के आयोजन सचिव डॉ. के.पी. तोमर ने विषय प्रवर्तन करते हुए संगोष्ठी की थीम पर प्रकाश डाला और बताया कि यह संगोष्ठी शोधार्थियों के लिए एक उत्कृष्ट मंच प्रदान कर रही है।
तकनीकी सत्र की अध्यक्षता डॉ. किरण बाला ने की, जिसमें प्रमुख वक्ताओं के रूप में डॉ. कुलदीप सिंह टंडवाल, डॉ. विक्की तोमर, डॉ. सुरजीत कौर, डॉ. निशा पाल ने अपने विचार प्रस्तुत किए। उन्होंने शिक्षा और लोक साहित्य के माध्यम से जनजातीय समाज में नैतिक मूल्यों के संरक्षण के विविध पहलुओं पर प्रकाश डाला 2 पुस्तक का विमोचन किया गया
कार्यक्रम का संचालन डॉ. वर्षा रानी, डॉ. विनीत भार्गव, डॉ. प्रशांत कुमार, डॉ. नीतू राम ने किया। संगोष्ठी के प्रथम दिन 12 राज्यों से आए शोधार्थियों एवं प्रतिभागियों ने अपने शोध पत्र प्रस्तुत किए, जिसमें उत्तराखंड, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश, हिमाचल प्रदेश, पंजाब, दिल्ली, हरियाणा, महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल और झारखंड के प्रतिनिधि शामिल थे।
संगोष्ठी का प्रथम दिवस अत्यंत ज्ञानवर्धक और विचारोत्तेजक रहा। शोधार्थियों ने अपने शोध पत्रों के माध्यम से शिक्षा, समाज और लोक साहित्य की विभिन्न परतों पर गहन चर्चा की। संगोष्ठी का दूसरा दिन भी अनेक महत्वपूर्ण विषयों पर संवाद और विमर्श के साथ जारी रहेगा।
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